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हनीमून में दो गैर मर्दों से चुदी पति बीमार था hanimun me do gair mardon se chudi pati bimar tha
गैर मर्द से चूत की चुदाई , हनीमून में दो गैर मर्दों से चुदी पति बीमार था hanimun me do gair mardon se chudi pati bimar tha , चुद गई , चुदवा ली , चोद दी , चुदवाती हूँ , चोदा चादी और चुदास अन्तर्वासना कामवासना , चुदवाने और चुदने के खेल , चूत गांड बुर चुदवाने और लंड चुसवाने की हिंदी सेक्स पोर्न कहानी.
दोस्तों आपने पिछली कहानियों में पढ़ा कि मैंने शादी से पहले कितने लोगों से चुदाई करवानी पड़ी और अब मैं आपको बताने जा रही हूँ कि मुझे सिर्फ पहले ही नहीं बल्कि शादी के बाद भी गैर मर्दों से ही चुदना पड़ा.. पढ़ते रहिये यह कैसे हुआ.... खैर मेरी शादी राज से हो गयी। शादी के बाद हम हनीमून पर नैनीताल घूमने गये। वहाँ मेन चौंक में राज की बुआ रहती थी। उनके दो जवान लड़के थे जो वहीं पर बिज़नेस करते थे- दिनेश और दीपक। दोनों ही राज से बड़े थे। दिनेश की शादी हो चुकी थी और दीपक अभी कुँवारा था। हम हफ़्ते भर के लिये वहाँ पहुँचे।
दोस्तों आपने पिछली कहानियों में पढ़ा कि मैंने शादी से पहले कितने लोगों से चुदाई करवानी पड़ी और अब मैं आपको बताने जा रही हूँ कि मुझे सिर्फ पहले ही नहीं बल्कि शादी के बाद भी गैर मर्दों से ही चुदना पड़ा.. पढ़ते रहिये यह कैसे हुआ.... खैर मेरी शादी राज से हो गयी। शादी के बाद हम हनीमून पर नैनीताल घूमने गये। वहाँ मेन चौंक में राज की बुआ रहती थी। उनके दो जवान लड़के थे जो वहीं पर बिज़नेस करते थे- दिनेश और दीपक। दोनों ही राज से बड़े थे। दिनेश की शादी हो चुकी थी और दीपक अभी कुँवारा था। हम हफ़्ते भर के लिये वहाँ पहुँचे।
रास्ते में राज की तबियत बिगड़ गयी। जब हम वहाँ पहुँचे तो राज का बदन बुखार से तप रहा था। डॉक्टर से चेक-अप करवाया तो डॉक्टर ने बेड रेस्ट की सलाह दी। मेरा मन उदास हो गया। हफ़्ते भर के लिये तो आये थे घूमने वो भी अगर कमरे में ही बीत जाये तो कितना बुरा लगता है। राज ने मेरी परेशानी को समझ कर अपने भाइयों से मुझे घुमा लाने को कहा। मगर मैं शर्म के मारे नहीं गयी। दिनेश की बीवी अरुणा थी नहीं। वो मायके गयी हुई थी नहीं तो मैं चली जाती। दोनों भाई काफी हैंडसम थे। उनके साथ का सोच कर ही मेरे गालों में लाली दौड़ जाती थी। वो दोनों भी मुझे गहरी नज़रों से देखते थे। दोनों इनसे बड़े थे लेकिन बुआ ने साफ कह रखा था कि हमारे यहाँ किसी प्रकार का घूँघट नहीं चलेगा। जैसे अपने मायके में रहती हो वैसे ही यहाँ रहना। इसलिये अब लुकाव या ढकाव का कोई सवाल ही नहीं था। आप यह कहानी हिंदी सेक्स स्टोरीज वेबसाइट पर पढ़ रहे है।
रक्शु ने मुझे ग्रूप सेक्स की ऐसी आदत डाल दी थी कि अब मैं एक से पूरी तरह संतुष्ट नहीं हो पाती थी। उस दिन मैं नहीं गयी मगर हल्के एक्सपोज़र से दोनों को एक्साइट करती रही। ठंड काफी थी। मैंने एक पारदर्शी गाऊन पहना था और उसके अंदर कुछ भी नहीं था। ऊपर से मोटी उनी शॉल कुछ इस तरह ले रखी थी कि उनके सामने वो बार-बार मेरे सीने से सरक जाती और उन्हें अपनी चूंचियों की झलक दिखला कर मैं वापस शॉल ओढ़ लेती थी। वो दोनों मुझ से काफी खुल गये और हमारे बीच हॉट चर्चा और सैक्सी चुटकुलों के आदान-प्रदान होने लगे थे। कई बार अंजाने में मेरे बदन से टकरा जाते थे या कभी किसी बात पर मुझे छूते तो मेरे सारे बदन में करंट जैसा बहने लगता।
अगले दिन भी राज की तबियत में कोई सुधार नहीं हुआ तो उसके बार-बार कहने पर मैं दिनेश और दीपक भैया के साथ घूमने निकली। मैंने भरपूर मेक-अप किया। दोनों के पास कार थी मगर उसे नहीं लेकर दोनों ने एक टैक्सी बुक की थी। इसका कारण तो मुझे बाद में पता चला कि दोनों असल में मेरे नज़दीक रहना चाहते थे। कोई भी ड्राईव नहीं करना चाहता था। पीछे की सीट पर मेरी दोनों तरफ में दोनों भाइ सट कर बैठे थे। अब दोनों की शायद ड्राईवर से पहले से ही कुछ बात हो चुकी होगी क्योंकि वो काफी तेज़ चला रहा था। पहाड़ों के घुमावदार रास्तों पर हर मोड़ पर मैं कभी दिनेश के ऊपर गिरती तो कभी दीपक के ऊपर। दोनों मुझे संभालने के बहाने मेरे बदन को इधर-उधर से छू रहे थे। मैं भी उनके साथ खिलखिला रही थी। इससे उनकी भी हिम्मत बढ़ गयी। उन्होंने अपनी कुहनियों से मेरी एक-एक चूंची को भी दबाना शुरू किया। हम इसी तरह मस्ती करते हुए कईं जगह घूमे और घूमते घूमते दोपहर हो गयी।
अचानक बात करते-करते दिनेश ने अपना हाथ मेरी जाँघ पर रख कर दबाया। मैंने अपने हाथों से उसके हाथ को वहाँ से हटा दिया। मगर कुछ देर बाद जब वापस उसने अपना हाथ मेरी जाँघों पर रखा तो मैंने कुछ नहीं बोला। उसे देख कर दीपक ने भी अपना हाथ मेरी दूसरी जाँघ पर रख दिया और दोनों मेरी जाँघों पर हाथ फिराने लगे।
"क्या कर रहे हो? ड्राइवर देख रहा होगा। मैं तुम्हारे भाई की बीवी हूँ।" मैंने उन्हें रोकते हुए कहा।
"अपना ही आदमी है... कुछ नहीं सोचेगा और रही बात राज की तो वोह तो रोज ही तुम्हारे पास रहेगा... हम को तो कभी कभार मौके का फायदा उठा लेने दो।" कहकर दीपक ने एक कम्बल निकाल कर हम तीनों के ऊपर ओढ़ा दिया और अब तो दोनों को खुली छूट मिल गयी। हम तीनों ने अपने-अपने बदन को कम्बल में छिपा लिया। दोनों मेरे बूब्स को अपने हाथों से मसलने लगे। मैं कसमसा रही थी। साड़ी छातियों पर से हट चुकी थी। मेरे ब्लाऊज़ के बटन खोलने के लिये दोनों के हाथ आपस में लड़ने लगे और मेरे ब्लाऊज़ के सारे बटन खोल दिये। इसी काम के दौरान दो बटन तो टूट ही गये। मुझे आगे की और झुका कर उन्होंने मेरी ब्रा का हुक खोल दिया और मेरी चूंचियाँ फ़्री हो गयी। दोनों उन पर टूट पड़े और जोर-जोर से मसलने लगे। मैं कभी उनको देखती और कभी सामने ड्राइवर को देखती घबरा रही थी मगर ड्राइवर चलाने में मगन था। दीपक के हाथ मेरी साड़ी को ऊँचा करने में लगे थे। फिर दिनेश ने अपना हाथ मेरे पेटीकोट के अंदर डाल कर मेरी पैंटी पर फिराया।
"नहीं प्लीज़... यहाँ नहीं।" मैं फुसफुसा कर बोली।
"कुछ नहीं होगा" दिनेश ने कहा।
"आआआआआप दोनों क्या कर रहे हो... मैं आपके छोटे भाई की बीवी हूँ," मैंने कहा, "मैं बर्बाद हो जाऊँगी... प्लीज़ छोड़ दो मुझे।"
"ठीक है।" दीपक ने कहा और फिर ड्राइवर से बोला "गाड़ी सन-व्यू होटल की तरफ ले चलो"
ड्राइवर ने कुछ देर में होटल के पोर्च में ले जाकर कार रोकी। मैं तब तक अपने कपड़े वापस पहन चुकी थी। उनकी बाँहों में समाये मैं लाऊँज में पहुँची। दीपक ने अलग हो कर काऊँटर पर जा कर कुछ बात की और फिर हमारे पास आकर बोला कि चलो रूम नम्बर एक सौ अस्सी में।
दोनों मुझे लेकर फर्स्ट फ्लोर पर बने एक सौ अस्सी नम्बर कमरे में आ गये। आप यह कहानी हिंदी सेक्स स्टोरीज वेबसाइट पर पढ़ रहे है। दोनों अंदर घुसते ही मुझ पर टूट पड़े। कुछ ही पलों में मैं पूरी तरह नंगी थी। दोनों इतने उतावले थे कि मुझे अपने सैंडल भी नहीं उतारने दिये और मुझे फटाफट उठाकर बिस्तर पर लिटा दिया और मेरी टाँगें फैला दीं। दोनों अभी तक पूरे कपड़ों में थे। दिनेश ने अपने होंठ मेरे निप्पल पर लगाये और उसे मुँह में लेकर चूसने लगा। दीपक मेरे गालों पर अपने होंठ फिराने लगा। एक जोड़ी होंठ टाँगों की तरफ से मेरी चूत की तरफ बढ़ रहे थे तो दूसरी जोड़ी होंठ मेरे माथे से फिसलते हुए गालों पर, कानों के पीछे से दोनों बाँहों को चूमते हुए मेरे होंठों पर आकर रुके। पूरे बदन में सिरहन सी दौड़ रही थी। मुझे लग रहा था कि दोनों देर क्यों कर रहे हैं... मुझे पकड़ कर अब तो बस मसल दें। दीपक ने अपनी जीभ मेरे मुँह में डाल दी और अपनी जीभ को सारे मुँह में फिराने लगा। दूसरे की जीभ मेरे नीचे वाले मुँह में घूम रही थी।
मैंने उत्तेजना में दिनेश का सिर अपने हाथों से अपनी चूत पर दबा दिया और उसकी जीभ को अपनी चूत के और अंदर लेने के लिये मैं अपनी कमर उचकाने लगी। मेरी टाँगें उठकर उसकी पीठ पर आपस में जुड़ कर उसके सिर को दबा रही थी। उधर दीपक के होंठ मेरे होंठों को छोड़ कर धीरे-धीरे नीचे सरकते हुए पहले मेरे गले पर और फिर धीरे-धीरे मेरी चूंचियों के ऊपर फिरने लगे। मेरी पूरी चूंची को होंठों से नापने के बाद मेरे निप्पलों पर धीरे-धीरे फिरने लगे। मैं उत्तेजना में पागल होने लगी। मुँह से "आआआआआहहहहह नहींईईईई ऊऊऊऊहहहहह" जैसी आवाजें निकलने लगी। बिना किसी का लंड अपने अंदर लिये और दोनों ने कपड़े उतारे बिना मुझे जोर से स्खलित होने पर मजबूर कर दिया। मैं गर्मी से हाँफ रही थी। मेरी बड़ी-बड़ी चूंचियाँ हर साँस के साथ उठा गिर रही थीं।
दोनों मुझे इसी हाल में छोड़ कर अपने अपने कपड़े उतार कर बिल्कुल नंगे हो गये। मैं वहाँ लेटी-लेटी उनके नंगे बदन को निहार रही थी। दोनों के लंड काफी लम्बे और मोटे थे, रक्शु की तरह। दीपक बिस्तर पर चढ़ कर लेट गया और मुझे अपने ऊपर लिटा लिया। मैंने अपनी टाँगें खोल कर उसके लंड को अपनी चूत पर लगाया और एक झटके में ही दीपक का लंड अपनी चूत के अंदर ले लिया। थोड़ी सी तकलीफ हुई मगर चूत बुरी तरह गीली होने के कारण एक बार में ही लंड अंदर तक चला गया। अब मैं उसके लंड पर धीरे-धीरे उठने बैठने लगी। अब दिनेश बिस्तर पर चढ़ा और उस पर खड़ा होकर अपने लंड को मेरे होंठों से छुवाया। फिर मेरे मुँह को पकड़ कर अपने लंड को मेरे होंठों पर फिराने लगा।
मैंने होंठ खोल कर उसके लंड को ऊपर से नीचे तक जीभ फिरायी। उसकी गोटियों को मुँह में लेकर कुछ देर तक चूसीं और फिर उसके लंड के ऊपर के छेद पर अपनी जीभ फिराने लगी। पहले अपने होंठों को थोड़ा सा खोल कर सिर्फ उसके लंड के ऊपर के सुपाड़े को तरह तरह से चूसा और फिर अपने मुँह को पूरी तरह खोल कर जितना हो सकता था उसके लंड को अपने मुँह में लेकर चूसने लगी। साथ-साथ उसके लंड पर अपनी जीभ भी फिरा रही थी। दीपक मेरी चूंचियों को अपने दोनों हाथों से मसल रहा था। मैं उसके लंड पर तेजी से उठा बैठ रही थी। पूरे लंड को एक दम बाहर तक निकालती और फिर तेजी से उसे पूरा अंदर तक ले लेती। उसने मेरे निप्पलों को मसल-मसल कर बड़े बड़े कर दिये थे। वो मुझे अपनी कमर उठा-उठा कर चोद रहा था।
कुछ देर बाद दिनेश ने अपना लंड मेरे मुँह से निकाला। उसका लंड मेरे थूक से सना हुआ चमक रहा था। मैंने उसकी तरफ देखा कि वो क्या करना चाहता है। मगर उसका जवाब दिया दीपक ने जब उसने मेरे निप्पलों को बुरी तरह मसलते हुए अपनी तरफ खींचा। मैं उसके सीने पर लेट गयी। दिनेश ने पीछे से आकर मेरे दोनों चूत्तड़ों को अलग कर के अपना लंड मेरी गाँड के छेद पर लगा कर ठेला मगर उसका लंड काफी मोटा होने के कारण अंदर नहीं जा पाया। उसने दोबारा मेरी गाँड के छेद को जितना हो सकता था उतना फैला कर अंदर ठेला मगर इस बार भी अंदर नहीं जा पाया। फिर उसने अपनी दो अँगुलियाँ दीपक के लंड के साथ-साथ मेरी चूत में डाल दीं। आप यह कहानी हिंदी सेक्स स्टोरीज वेबसाइट पर पढ़ रहे है। जब अँगुलियाँ बाहर निकालीं तो उनमें मेरी चूत का रस लगा हुआ था। उसे उसने अपने लंड पर लगाया और दोबारा चूत के अंदर अँगुली डाल कर रस बाहर निकाला और मेरी गाँड की छेद में अँगुली डाल कर उस जगह को गीला किया। फिर उसने अपना लंड वहाँ लगा कर जोर से ठोका।
उसका लंड किसी तरह थोड़ा अंदर घुसा। दर्द की एक तेज लहर मेरे बदन में फैल गयी और मैं "आआआआहहहह" कर उठी। अपने सुपाड़े को अंदर कर वो कुछ देर के लिये रुका तो थोड़ा दर्द कम हुआ। कुछ देर बाद एक झटके में ही उसने पूरा का पूरा लंड मेरी गाँड के अंदर कर दिया। फिर तो दोनों भाइयों में होड़ लग गयी मुझे चोदने की। एक ऊपर से ठोक रहा था तो दूसरा नीचे से कमर उठा रहा था। "हहहहम्म्म्म्म्फफफफफ उउउउहहहहह उफफफफफ" जैसी आवाजें तीनों के मुँह से निकल रही थीं। तीनों पसीने से तरबतर हो गये। बहुत शक्ति थी दोनों में। करीब घंटे भर तक चलती रही मेरी चूत और गाँड की चुदाई। फिर पहले दीपक के लंड ने अपनी पिचकारी छोड़ी और फिर दिनेश ने मेरी गाँड को अपने लंड के पानी से भर दिया। मैं तो पहले ही अपनी चूत का रस कईं बार छोड़ चुकी थी। हम तीनों एक दूसरे के ऊपर ही कुछ देर तक लेटे रहे।
फिर दूसरे दौर के लिये तैयारी करने लगे। कईं घंटों तक यूँ ही चुदाई का दौर चलता रहा जब तक हम तीनों थक कर चूर न हो गये। शाम को तीनों उठ कर कपड़े पहन कर सन-सेट पाईंट देखने गये। मुझे उन्होंने पैंटी और ब्रा नहीं पहनने दीं। सीने पर सिर्फ साड़ी लपेट रखी थी क्योंकि ब्लाऊज़ भी उन्होंने पहनने से रोक दिया था। शॉल ओढ़ रखी थी इसलिये किसी को पता नहीं चल रहा था। मगर रास्ते में दोनों मेरे चूंचियाँ मसलते रहे।
वो जगह बहुत ही रोमाँटिक लगी। घनी पहाड़ियों के बीच सूरज अस्त हो रहा था। बर्फ की चोटियाँ लाल रंग से नहायी हुई थीं और ऐसा लग रहा था मानो बर्फ में आग लग गयी हो। बहुत ही रोमाँटिक दृश्य था। हल्का-हल्का अँधेरा होने लगा तो दोनों मुझे बारी-बारी अपने सीने से लिपटा रहे थे। मैं भी उनसे लिपट कर किस कर रही थी। वहाँ से हम घर लौटे। घर में हम आपस में सामान्य बर्ताव करने लगे। राज की तबियत थोड़ी ठीक हुई थी मगर अभी भी एक दम स्वस्थ होने में समय लगने वाला था। दोनों ने डिनर के वक्त सबको सुनाते हुए कहा, "रुष्मी कल यहाँ से कोई अस्सी किलोमिटर दूर एक बहुत ही प्यारी जगह है... सुबह वहाँ के लिये निकलना है और लौटते हुए देर रात हो जायेगी"
बुआ जी यह सुनते ही बोलीं, "नहीं कोई जरूरत नहीं रात को इन पहाड़ियों में ड्राइव करने की। दिनेश ये तो नई है लेकिन तू क्या पागल हो गया है। रात को वहीं रुक जाना। तेरा दोस्त है ना बाबू उसके घर रुक जाना।" मैंने पल भर के लिये दिनेश और दीपक की तरफ देखा तो दोनों कुटिलता से मुस्कुरा रहे थे। मैं समझ गयी थी कि दोनों मुझे क्या क्या दिखाने वाले हैं रात भर। अगले दिन सुबह हम वहाँ के लिये निकल पड़े।
दो घंटे में वहाँ पहुँच गये। वहाँ सारी जगह घूमने के बाद उनके दोस्त बाबू के घर गये। वहाँ उनका भरा पूरा परिवार था इसलिये एक होटल में ही कमरा बुक किया। शाम को बाबू भी आ गया था। तीनों की महफिल जमी। मैंने बदल कर एक पारदर्शी ब्लाऊज़ और पेटीकोट और साथ में बहुत ही हाई हील के सैंडल पहन लिये थे। उन्होंने और कुछ पहनने ही नहीं दिया। मैंने तीनों के गिलास में पैग बनाये। स्टीरियो पर एक डाँस नम्बर लगा दिया था। उनके कहने पर मैंने भी ज़िंदगी में पहली बार व्हिस्की पी। आप यह कहानी हिंदी सेक्स स्टोरीज वेबसाइट पर पढ़ रहे है। किसी तरह नाक सिकोड़ कर दो गिलास खाली कर दिये। लेकिन इसी में ही मेरा सिर घूमने लगा। मेरे साथ तीनों बारी-बारी थिरक रहे थे और डाँस करते-करते कामुक्ता से मेरे बदन पर हाथ फिराते हुए मेरे होंठों को चूस रहे थे। मैं भी उनके साथ पूरे मूड में थी और मैं उनके साथ ही खूब अपने बदन को रगड़ रही थी। तभी डाँस करते-करते मुझे दिनेश ने पीछे से पकड़ा और मेरे ब्लाऊज़ के बटन खोलने लगा। बाबू मेरे पेटीकोट को ऊँचा कर के मेरी चूत के ऊपर से सहलाने लगा। दीपक मेरे पेटीकोट के नाड़े से उलझा हुआ था। उसमें गाँठ पड़ गयी तो उसने एक झटके में नाड़े को तोड़ दिया। तब तक दिनेश मेरे ब्लाऊज़ को बदन से अलग कर चुका था। अब मैं पूरी तरह नंगी हो गयी और सिर्फ हाई हील सैंडल पहने थिरकने लगी।
फिर मैंने भी तीनों के कपड़े उतार कर उन्हें बिल्कुल नंगा कर दिया और हम एक दूसरे के बदन मसलने लगे। तीनों ने मुझे घुटनों पर बिठा दिया और तीन मोटे तगड़े लंड मेरे सामने झटके खा रहे थे। मैं बारी-बारी से तीनों के लंड चूस रही थी। एक के लंड को कुछ देर तक मुँह में लेकर चूसती और फिर पूरे लंड पर जीभ फिराती और बीच बीच में अन्ड-कोशों पर भी अपनी जीभ फिराती। फिर उसे छोड़ कर यही सब दूसरे लंड के साथ करती। तीनों बहुत ज्यादा उत्तेजित हो चुके थे। फिर उन्होंने मुझे उठा कर बिस्तर पर लिटा दिया। दिनेश को मेरी चूत चाटने में बहुत मजा आता था इसलिये वो मेरी चूत पर अपना मुँह रख कर अपनी जीभ अंदर डाल कर मेरे रस को चाटने लगा। दीपक मेरी चूंचियों पर चढ़ बैठा। उसके लंड को दोनों चूंचियों के बीच में लेकर मैंने अपनी दोनों चूंचियों को अपने हाथों से जोड़ रखा था। वो मेरी चूंचियों के बीच अपना लंड आगे पीछे करने लगा। बाबू ने मेरी बगल में आकर अपना लंड मेरे मुँह में घुसेड़ दिया।
तीनों अब मेरे शरीर से खेलने लगे। मैं भी बहुत गरम हो गयी थी। इन सब के बीच मेरा एक बार पानी निकल गया। सबसे पहले दीपक ने मेरी चूंचियों और चेहरे के ऊपर अपने लंड का पानी गिरा दिया। फिर बाकी दोनों ने मुझे उठा कर घोड़ी की तरह बनाया और पीछे की तरफ से मेरी चूत में बाबू ने अपना लंड डाल दिया। दिनेश के लंड को अभी भी मैं चूस रही थी। मैंने अपनी चूत का पानी दूसरी बार बाबू के लंड पर छोड़ दिया। दोनों काफी देर तक मुझे इसी तरह चोदते रहे और फिर दोनों एक साथ झड़ गये। बाबू के पानी ने मेरी चूत को भर दिया और दिनेश ने मेरे मुँह को अपने वीर्य से भर दिया। कुछ देर मेरे मुँह में स्खलित होने के बाद दिनेश ने अपना लंड मेरे मुँह से खींच कर बाहर निकाल लिया और बाकी ढेर सारा वीर्य मेरे चेहरे पर और मेरे चूंचियों पर गिरा दिया। तीनों थक कर पसर गये। मैं खुद को साफ करने के लिये उठना चाहती थी मगर उन्होंने मुझे उठने नहीं दिया और मुझे वैसे ही वीर्य से सने हुए पड़े रहने को कहा। इसी तरह आसन बदल-बदल कर रात भर और कईं दौर चले। दीपक और दिनेश तो दो दिन से काफी मेहनत कर रहे थे इसलिये मुझ में दो बार स्खलित हो कर थक गये। मगर बाबू ने मुझे रात भर काफी चोदा। आप यह कहानी हिंदी सेक्स स्टोरीज वेबसाइट पर पढ़ रहे है।
सुबह हम नहा धो कर तैयार होकर वापस आ गये। मैं थक कर चूर हो रही थी। बुआ ने मुझे पूछा, "क्यों रात को ढँग से सो नहीं पायी क्या?" मैंने सहमती में सिर हिलाया। दीपक मुझे देख कर मुस्कुरा दिया। अगले दिन तक राज ठीक हो गया था लेकिन तब तक मैंने काफी सैर कर ली थी। बहुत घुड़सवारी हो चुकी थी मेरी। उसके बाद भी मौका निकाल कर उन दोनों ने मुझे कईं बार चोदा। हफ्ते भर बाद हम वापस आ गये और उसके बाद दोबारा उनसे मुलाकात ही नहीं हुई। दोस्तों अब इतनी चुदाई के बाद आप सोच रहे होंगे की मैं शांत हो गई होगी लेकिन अब भी मैं शांत नहीं हुई, अब मेरी नन्द की शादी में मेरे साथ क्या हुआ, अगली कहानी में जरुर पढ़ें..........
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