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साली को नंगी नहाते देखा - जीजा ने की साली की चुदाई खूब चोदा - Jija Sali Sex Story In Hindi
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मेरी पत्नी को पहला बेटा हुआ। जब मैं अपनी पत्नी को अपनी ससुराल से लेने गया तो मेरी साली जो बी.ए.- द्वीतीय में पढ रही थी, की गर्मियों की छुट्टियाँ चल रही थी और लगभग एक महीने की छुट्टियाँ बाकी थी। मेरी पत्नी ने घरवालों से जिद करके, छोटे बच्चे की वजह से कविता को भी साथ ले लिया। हम सब गुड़गाँव वापस आ गये।
मेरी पत्नी और कविता सारा दिन छोटे बच्चे की देखभाल में लगी रहती। मैंने 10 दिन की छुट्टियाँ ले ली। दिन में मैं और कविता जब भी खाली होते तो लूडो या कैरम खेलते।
शाम को हम सब पार्क में जाते और अकसर रात का खाना बाहर खाते। मैं कविता से पूछता कि खाने में क्या लेना है। फिर कविता की ही पसंदीदा खाना आर्डर करता। हम सब जब भी मार्केट जाते तो मैं कविता को जरूर से कुछ ना कुछ दिलवाता।
कविता मना करती मगर मैं जबरदस्ती उसे कभी गौगल, कभी पर्स वगैरा कुछ ना कुछ जरुर दिलवाता। चार दिनों में ही कविता और मैं एक दूसरे से बहुत खुल गये थे। रात को जब मेरी पत्नी छोटे बच्चे को दूध पिलाते-पिलाते सो जाती तो मैं और कविता देर रात तक बाते करते। खैर…
एक दिन मेरी पत्नी दोपहर में बच्चे को दूध पिलाते-पिलाते सो गई और कविता नहाने के लिये चली गई। मैं गैरेज में गाड़ी साफ करने लगा। बाथरुम की छोटी सी खिड़की गैरेज में खुलती थी। खिड़की कुछ उँचाई पर थी। इसलिये आसानी से कुछ देख नहीं सकते थे।
मैं जब गाड़ी के टायर पर चढ़ कर गाड़ी की छत साफ कर रहा था तभी मेरी नजर बाथरुम की खिड़की पर पड़ी। बाथरुम में कविता बिलकुल नंगी शावर के नीचे नहा रही थी। उसका जवान नंगा जिस्म शावर में मेरी तरफ पीठ किये था। उसके नंगे और गोरे बदन पर शावर से पानी की बूंदें गिरकर चमक रही थी।
उसके चूतड़ों की गोलाईयां और गहराइयाँ मेरे नजरों के सामने थी। उस समय मेरे बदन में सनसनी फ़ैल रही थी। फिर वो पलटी और उसने अपना बदन अब मेरे सामने कर दिया। अब मुझे उसके बड़े-बड़े स्तनों पर पानी की बूँदें चमक रही थी, छोटे-छोटे भूरे चुचूक मुझे और उत्तेजित कर रहे थे। उसकी चूत के घने बाल पानी की वजह से चिपके हुऐ थे और लटक रहे थे। शावर का ठंडा- ठंडा पानी उसके शरीर पर पड़ कर बह रहा था। वो कभी अपनी चुंचियाँ मलती, तो कभी अपनी चूत साफ़ करती। मैं उसे देख-देख कर और उत्तेजित होने लगा था।
जब वो नहा चुकी तो अपना बदन तौलिये से पौंछने लगी। वो तौलिये से अपनी चुचियाँ मल-मल कर पौंछने लगी। उसकी चुंचियाँ कड़ी होने लगी थी। फिर वो तौलिये से अपनी चूत साफ़ करने लगी। उसकी चूत के काले घने बाल तौलिये से पोंछते ही घुँघराले हो गये और उनमें एक चमक नजर आने लगी। उसने अपना बदन तौलिये से पोछ कर कपड़े पहनने शुरू किए। सबसे पहले उसने अपने वक्ष को सफेद ब्रा में कैद किया।
फिर अपनी चूत को गुलाबी कच्छी से ढका। फिर उसने सफेद मगर रंगबिरंगा लोअर पहना। फिर वो जैसे ही अपना टॉप पहनने लगी तभी उसकी नजर खिड़की की तरफ पड़ी और उसने मुझे देख लिया। मैं फौरन नीचे हो गया।
वो बाथरूम से बाहर आई और तौलिया सुखाने के बहाने गैराज में आई और अनजान बनते हुए बोली,”अरे… जीजू, आप अभी तक गाड़ी ही साफ कर रहे हैं?”
उसकी नजरें मेरी हाफ पैंट के ऊपर थी। जहां मेरा लण्ड हाफ पैंट के ऊपर से उफनता हुआ दिख रहा था और एक टैंट सा बना रहा था।
मैंने कहा,”बस गाड़ी साफ हो गई। चलो चलें।”
और गाड़ी साफ करने का कपड़ा अपनी हाफ पैंट के ऊपर से उफनते हुऐ लण्ड के आगे कर लिया। हम दोनों अन्दर आ गये। मैं आते ही टॉयलेट में घुस गया और अपने उफनते हुए लण्ड को मुठ मार कर शांत किया।
उस दिन से मेरा रोजाना का नियम बन गया, कविता को खिड़की से झाक कर बाथरुम में नहाते देखने का। जब भी कविता बाथरुम में नहाने जाती मैं गैराज में किसी ना किसी बहाने चला जाता। कविता को पता होता था कि मैं उसे छुप-छुप कर देख रहा हूँ। मगर अब वो ओर दिखा-दिखा कर देर तक नहाती। चोरी से खिड़की की तरफ देख कर मुझे अपने को देखते हुए देखती। अब वो जिस समय बाथरूम में नहाने घुसती तो जोर से चिल्ला कर कहती,”दीदी, मैं नहाने जा रही हूँ।”
फिर जब मैं बाथरूम की खिड़की के छेद में से झांक कर देखने लगता तो वो बाथरूम में अपने कपड़े उतारने लगती।
अगर मुझे किसी वजह से गैरेज में आने में देर हो जाती तो वो बाथरुम ऐसे ही टाईम पास करती रहती। जब वो गैरेज के गेट खुलने की आवाज सुन लेती तभी वो बाथरुम में अपने कपड़े उतारना शुरु करती। मुझे अपनी ओर आकर्षित करने के लिए वो अनजान बनते हुए सबसे पहले अपना टॉप उतारती। फिर खिड़की की तरफ मुँह करके अपनी ब्रा उतारती। ब्रा उतरते ही जब उसके स्तन उछल कर बाहर आ जाते तो वो उन स्तनों को धीरे-धीरे से सहलाती और अपने चुचुकों को मसलती।
फिर अपनी पीठ करते हुए अपना लोअर उतार देती। फिर खिड़की की तरफ पलट कर अपनी पेंटी भी उतार देती। फिर अपनी चूत को रगड़ती और चूत के बालों में हाथ फिराती और फिर उन बालों को पकड़ कर ऊपर खींचती। फिर पलट कर अपने चूतड़ों की गोलाईयां और गहराइयाँ मेरी नजरों के सामने करती। ऐसा मुझे लगा। खैर…
उसके ऐसा करने से मेरे बदन में सनसनी फ़ैल जाती और मेरा लण्ड तन कर खडा होकर हाफ पैंट के अन्दर उफन जाता और एक टैंट सा बना देता। फिर जब वो शावर खोल कर पानी अपने बदन पर डालने लगती तो मैं हाफ पैंट के अन्दर से अपना लण्ड बाहर निकाल लेता और कविता को नहाते देखते हुऐ अपने उफनते हुए लण्ड को मुठ मार कर शांत किया करता। फिर जब वो शांत हो जाता और कविता अपना बदन तौलिये से पोंछ कर कपड़े पहनने शुरू करती तो मैं खिड़की से अलग़ हो जाता।
कई दिनों तक ऐसा ही चलता रहा। मेरी छुट्टियाँ खत्म होने वाली थी। बस दो छुट्टियाँ बची थी।
एक दिन मेरी पत्नी पड़ोस की अपनी सहेली के साथ बच्चे के लिये कुछ कपड़े लेने मार्केट चली गई। जाते-जाते वो मुझ से कहने लगी कि आप यहीं रहो। मैं अपनी फ्रैंड के साथ जा रही हूँ। कविता सो रही है। रात को छोटे ने काफी परेशान किया। वो बेचारी सारी रात छोटे को खिलाती रही। उसे सोने दो। जब वो उठ जाये तो उसे खाना गर्म करके दे देना।
जब वो चली गई तो मैंने चुपके से देखा कि कविता स्कर्ट और टी-शर्ट पहन कर सो रही है। मैं बाथरूम में नहाने चला गया। फिर नहा के आकर मैंने फिर कविता की तरफ देखा तो मैं हैरान रह गया। कविता सो रही थी। मगर उसकी टी-शर्ट अन्दर ब्रा तक अपर उठी हुई थी और उसकी सफेद ब्रा दिख रही थी। उसकी स्कर्ट उसकी जांघों के उपर तक उठी हुई थी और उसकी जांघों के बीच में उसकी लाल पैंटी दिख रही थी। उसकी लाल पैंटी के उपर उसकी फूली हुई चूत का उभार भी नजर आ रहा था।
मैंने उसे आवाज लगाई- कविता ! कविता ! ताकि वो अगर उठे या करवट ले तो उसकी स्कर्ट ठीक हो जाये। मगर वो ना तो उठी ना ही उसने करवट ली। मैं कुछ देर तक उसे निहारता रहा। उसका गोरा-गोरा पेट, चिकनी-चकनी टांगें, भरी-भरी जांघे और जांघों के बीच में उसकी लाल पैंटी के ऊपर उसकी फूली हुई चूत मुझे उत्तेजित कर रहे थे।
मैं कमरे से बाहर आकर सौफे पे बैठ गया। मेरा दिलो-दिमाग कविता की ही तरफ था। मन उसको देखने और छूने को कर रहा था। मैं फिर से उठ कर कमरे की तरफ गया। मैंने फिर कविता की तरफ देखा। कविता सो रही थी। मैं दरवाज़े पर खडा उसे कुछ देर तक निहारता रहा। उसकी भरी-भरी चिकनी जांघे और जांघों के बीच में उसकी लाल पैंटी के उपर उसकी फूली हुई चूत मुझे बहुत उत्तेजित कर रहे थे।
मैं कमरे के अन्दर जा कर कविता के पास बैठ गया। मैंने हल्के से उसे आवाज लगाई- कविता-कविता…
मगर वो ना तो उठी ना ही उसने करवट ली। मैं फिर कुछ देर तक उसे निहारता रहा। फिर मैंने अपना हाथ उसकी चिकनी जांघ पर रख दिया। कुछ देर बाद मैं उसकी भरी-भरी मासंल जांघ पर हाथ फिराने लगा। फिर मैंने अपना हाथ उसकी लाल पैंटी के ऊपर उसकी फूली हुई चूत पर रख दिया। उसकी फूली हुई चूत मेरी हथेली के गड्डे में सैट हो गई। फिर मैं अपनी हथेली से उसकी फूली हुई को चूत हल्के-हलके से दबाने लगा। कविता उसी तरह से सो रही थी या सोने का नाटक कर रही थी। खैर…
मेरी हिम्मत बढ़ती जा रही थी। मैं उसकी पैन्टी के अन्दर हाथ डालने की कोशिश करने लगा। मगर उसकी स्कर्ट की वजह से पैन्टी के अन्दर हाथ घुस नहीं पा रहा था। मैंने सावधानी से उसकी स्कर्ट का हुक और साईड चेन खोल दी। फिर मैं उसकी पैन्टी के अन्दर से हाथ डाल कर उसकी चूत के बालों पर हाथ फिराने लगा। कविता उसी तरह से सो रही थी या सोने का नाटक कर रही थी और मेरी हिम्मत लगातार बढ़ती जा रही थी।
फिर मैं कविता की चूत के बालों में हाथ फिराते-फिराते अपनी उँगली कविता की चूत के फाँक के ऊपर फेरने लगा। फिर उंगलियों से कविता की चूत के फाँक को खोलने और बन्द करने लगा। कुछ देर बाद मैंने अपनी एक उँगली कविता की चूत के फाँक के अन्दर घुसा कर कविता की चूत के जी पॉयंट को हल्के-हल्के रगड़ने लगा।
उसकी पैन्टी की वजह से मुझे अपनी उँगली कविता की चूत के अन्दर डालने और कविता की चूत के जी-पॉयंट को रगड़ने में दिक्कत हो रही थी। इसलिये मैंने उसकी पैन्टी को धीरे-धीरे से नीचे खींच कर उसके घुटनों पर कर दी। फिर मैंने अपनी एक उँगली कविता की चूत के अन्दर घुसा उसकी चूत को हल्के-हल्के रगड़ने लगा। कुछ देर बाद मैंने उसकी पैन्टी भी उसकी टांगों से जुदा कर दी और सावधानी से उसकी दोनों टांगों को अलग कर दिया। अब मैं उसकी बगल में लेट कर उसकी चूत के घने बालों पर हाथ फिराने लगा।
फिर मैंने अपना हाथ उसकी चूत पर रख दिया और ऊपर से ही रगड़ने लगा। फिर मैं कविता की चूत की फांक पर हाथ फिराने लगा। फिर हाथ फिराते-फिराते मैंने अपनी उँगलियाँकविता की चूत के अन्दर डाल दी। फिर उंगलियों को कविता की चूत के फाँको में डाल कर रगडने लगा और उसकी चूत के जी-पॉयंट को अपनी उंगलियों से दबाने और हल्के-हल्के रगड़ने लगा। लगभग 5-7 मिनट बाद कविता की चूत से कुछ बहुत चिकना सा निकलने लगा।
अचानक कविता के मुँह से सिसकियाँ निकलने लगी और उसने अपनी आँखें खोल दी और अनजान बनते हुए बोली, “अरे… जीजू कब आए .. और ये क्या कर रहे हैं?”
मैंने कहा “बस अभी ही आया हूँ… और सोचा कि आज कविता को कुछ मजा कराया जाये। सच बताओ, क्या मजा नहीं आ रहा हैं? मुझे पता है तुम जाग रही थी और मजे ले रही थी। वरना तुम्हारे नीचे से चिकना-चिकना सा नहीं निकलता।”
कविता मुस्कुराईं और बोली,”नहीं, सच मैं तो सो रही थी। मुझे नहीं पता आप क्या कर रहे थे। और आपने मेरी चड्डी क्यो उतार रखी है।”
उसका झूठ पकड़ में आ रहा था। मैं बोला,”प्लीज़ ! कविता मजाक मत करो। प्लीज़ ! मेरा साथ दो। हम दोनों मिलकर खूब मजा करेंगे।”
कविता फिर मुस्कुराईं और बोली,”क्या आपका साथ दूँ और क्या दोनों मिलकर मजा करेंगे। बताईये ना। और मेरी चड्डी क्यो उतार रखी है। आप क्या मजा कर रहे थे। और मेरी चड्डी के अन्दर क्या मजा ढूंढ रहे थे।”
मैंने कहा,”बताऊँ कि मैं तुम्हारी चड्डी के अन्दर क्या मजा ढूंढ रहा था।” कह कर मैंने उसे अपने सीने से चिपका लिया और फिर मैंने अपने जलते हुऐ होंठ कविता के होंठों पर रख दिए।
फिर मैं उसके नरम-नरम होंठों को अपने होंठों में भर कर चूसने लगा। कविता ने भी मुझे अपनी बाँहो में कस लिया। फिर मैं कविता को किस करते-करते अपने हाथ को नीचे ले जाकर उसकी टी-शर्ट के उपर से उसके स्तनों को दबाने लगा। फिर कुछ देर बाद मैं उसकी टी-शर्ट के गले के अन्दर से हाथ डाल कर उसके सख्त हो चुके वक्ष को दबाने लगा।
फिर मैं उसकी टी-शर्ट को उतारने लगा तो कविता बोली,”जीजू, क्या करते हो। दीदी आने वाली होंगी।”
मैंने कहा,”चिंता मत करो। वो मार्केट गई और दो-तीन घंटे तक नहीं आँएगी।”
यह कह कर मैं फिर उसकी टी-शर्ट को उतारने लगा। अब कविता ने कोई विरोध नहीं किया। मैंने उसकी टी-शर्ट उतार कर बैड पर फैंक दी। कविता के बड़े-बड़े और गोरे-गोरे स्तन सफेद ब्रा में फँसे हुए थे। मैं उसकी ब्रा के ऊपर से उसके स्तनों को दबाने लगा। कविता ने अपनी आंखे बंद कर ली।
कुछ देर बाद मैं उसकी ब्रा के हुक खोल कर उसकी नंगी पीठ पर हाथ फिराने लगा। फिर कुछ देर मैंने उसकी ब्रा भी उसके तन से जुदा कर दी और दोनों कबूतरों को आज़ाद कर दिया और उन्हें पकड़ कर मसलने लगा। मैं उसके गोरे-गोरे सख्त स्तनों को दबाने लगा और साथ-साथ उसके भूरे चुचूकों को हल्के-हल्के मसलने लगा। फिर मैं उसके नरम-नरम गोरे-गोरे स्तनों को अपने होंठों में भर कर चूसने लगा। कविता के मुँह से सिसकियाँ निकलने लगी। फिर मैंने उसकी खुली पड़ी स्कर्ट को भी उतार कर फैंक दिया। कविता का नंगा, गोरा और चिकना बदन मेरे सामने था।
फिर मैंने कविता से अलग हो कर अपने सारे कपड़े उतार दिये और पूरी नंगा होकर कविता से लिपट गया और मैंने कविता को अपने साथ सटा कर लिटा लिया। मेरा लण्ड तन कर कविता की चिकनी टांगों से टकरा रहा था। मैं कविता की चिकनी टांगों पर हाथ फिराने लगा। उसकी पाव रोटी की तरह उभरी हुई उसकी चूत पर हाथ फेरने लगा। फिर कुछ देर तक उसकी चूत पर हाथ फेरने के बाद मैं अपनी हथेली से उसकी चूत को दबाने लगा।
वो बहुत गरम हो चुकी और जोर-जोर से सिस्कारियां ले रही थी और मेरे बालों पर हाथ फेर रही थी और अपने होंठ चूस रही थी। मैंने उसे धीरे से बिस्तर पर सीधा लिटा दिया और उसकी बगल में लेट कर मैं कविता की चूत के कट पर हाथ फिराने लगा। फिर हाथ फिराते-फिराते मैंने अपनी उँगलियाँ कविता की चूत के अन्दर डाल दी। फिर उंगलियों से कविता की चूत के फाँको को खोलने और बन्द करने लगा। फिर मैं कविता की चूत के जी पॉयंट को रगड़ने लगा। कविता के मुँह से सिसकियाँ निकलने लगी। कविता ने मस्त होकर अपनी आंखें बंद कर ली। कुछ देर बाद कविता की चूत से कुछ चिकना-चिकना सा निकलने लगा था।
मेरा लण्ड कविता की जांघों से रगड़ खा रहा था। मैंने कविता का हाथ पकड़ कर अपने लण्ड पर रख दिया। कविता ने बिना झिझके मेरा लण्ड अपने हाथ में थाम लिया। वो मेरे लण्ड को अपने हाथ में दबाने लगी। मेरा लण्ड तन कर और भी सख्त हो गया था। कविता मेरे लण्ड को मुठ्ठी में भर कर आगे-पीछे करने लगी। फिर वो मेरा लण्ड पकड़ कर जोर-जोर से हिलाने लगी।
अब मैं कविता की चूत मारने को बेताब हो रहा था। मैं कविता के ऊपर आकर लेट गया। कविता का नंगा जिस्म मेरे नंगे जिस्म के नीचे दब गया। मेरा लण्ड कविता की जांघों के बीच में रगड़ खा रहा था।
मैं उसके उपर लेट कर उसके चुचूक को चूसने लगा। वो बस सिस्करियां ले रही थी। फिर मैं एक हाथ नीचे ले जा कर उसकी चूत पर रख कर रगड़ने लगा और फिर एक उंगली उसकी चूत में डाल दी। वो मछली की तरह छटपटाने लगी और अपने हाथों से मेरा लण्ड को टटोलने लगी। मेरा लण्ड पूरे जोश में आ गया था और पूरा तरह खड़ा हो कर लोहे जैसा सख्त हो गया था।
कविता मेरे कान के पास फुसफसा कर बोली,”ओह जीजू। प्लीज़ ! कुछ करो ना। मेरे तन-बदन में आग सी लग रही हैं।”
ये सुन कर अब मैंने उसकी टांगें थोड़ी ओर चौड़ी की और उसके ऊपर चढ़ गया।
फिर अपने लण्ड का सुपाड़ा उसकी चूत पर रख कर रगड़ने लगा। फिर मैंने अपने लण्ड का सुपाड़ा उसकी चूत पर टिका कर एक जोरदार धक्का मारा जिससे लण्ड का सुपाड़ा कविता की कुंवारी चूत के हुआ अन्दर चला गया। लण्ड के अन्दर जाते ही कविता के मुँह से चीख निकल गई और वो अपने हाथ पाँव बैड पर पटकने लगी और मुझे अपने ऊपर से धकेलने की कोशिश करने लगी। लेकिन मैंने उसे कस कर पकड़ा था।
वो मेरे सामने गिड़गिड़ाने लगी, “प्लीज़ जीजू, मुझे छोड़ दीजिए, मैं मर जाऊंगी, बहुत दर्द हो रहा है।
मैंने कहा “कविता तुम ही तो कह रही थी कि जीजू, प्लीज़ ! कुछ करो ना। मेरे तन-बदन में आग सी लग रही हैं। मैंने इसलिये ही तो तुम्हारे अन्दर डाला है। कविता तुम चिन्ता मत करो, पहली बार में ऐसा होता है, एक बार पूरा अन्दर जाने के बाद तुम्हें मज़ा ही मज़ा आएगा। पहली बार तुम्हारी दीदी को भी ऐसा ही दर्द हुआ था और अब मैं और तुम्हारी दीदी रोज ये करते हैं और तुम्हारी दीदी अब खूब एनजाय करती है।”
फ़िर मैंने एक और धक्का लगा कर उसकी चूत में अपना आधा लण्ड घुसा दिया। कविता तड़पने लगी। मैं उसके ऊपर लेट कर उसके उरोज़ों को दबाने लगा और उसके होठों को अपने होठों से रगड़ने लगा। इससे कविता की तकलीफ़ कुछ कम हुई। अब मैंने एक जोरदार धक्के से अपना पूरा का पूरा लण्ड उसकी चूत के अन्दर कर दिया। मेरा 8″ लम्बा और ३” मोटा लण्ड उसके कौमार्य को चीरता हुआ उसकी कुँवारी चूत में समा गया।
इस पर वो चिल्लाने लगी “आहह्ह, मर गई। ओह प्लीज़ जीजू इसे बाहर निकालिये, मैं मर जाउंगी।” उसकी चूत से खून टपकने लगा था।
मैं रुक गया और कविता से बोला “प्लीज़ ! कविता, मेरी जान, अब और दर्द नहीं होगा।”
कविता का यह पहला सैक्सपिरियन्स था। इसलिऐ मैं वही रुक गया और उसे प्यार से सहलाने लगा और उसके माथे को और आँखो को चूमने लगा । उसकी आंख से आंसू निकल आये थे और वो सिस्कारियां भरने लगी थी। यह देख कर मैंने कविता को अपनी बाँहो में भर लिया।
फिर मैंने अपने जलते हुऐ होंठ कविता के होंठों पर रख दिए और मैं उसके नरम-नरम होंठों को अपने होंठों में भर कर चूसने लगा, ताकि वो अपना सारा दर्द भूल जाये। कुछ देर बाद उसका दर्द भी कम हो गया और उसने मुझे अपनी बाँहों में से कस लिया। मैंने भी कविता को अपनी बाँहों में भर लिया। मेरा पूरा लण्ड कविता की चूत के अन्दर तक समाया हुआ था। फिर मैं अपने होंठों से उसके नरम-नरम होंठों को चूसने लगा। कुछ देर तक हम दोनो ऐसे ही एक-दूसरे से चिपके रहे और एक-दूसरे के होंठों को चूसते रहे।
फिर मैं अपने लण्ड को उसकी चूत में धीरे-धीरे अन्दर बाहर करने लगा। कविता ने कोई विरोध नहीं किया। अब शायद उसका दर्द भी खत्म होने लगा था और वो जोश में आ रही थी और अपनी कमर को भी हिलाने लगी थी। उसकी चूत में से थोडा सा खून बाहर आ रहा था जो इस बात का सबूत था कि उसकी चूत अभी तक कुंवारी थी और आज ही मैंने उसकी सील तोड़ी है।
उसकी चूत बहुत टाइट थी और मेरा लण्ड बहुत मोटा था, इसलिए मुझे कविता को चोदने में बहुत मजा आ रहा था। मैं अपने लण्ड को धीरे-धीरे से कविता की चूत के अन्दर-बाहर कर रहा था। फिर कुछ देर बाद कविता ने अपनी टांगें उपर की तरफ मोड़ ली और मेरी कमर के दोनों तरफ लपेट ली। मैं अपने लण्ड को लगातार धीरे-धीरे कविता की चूत के अन्दर-बाहर कर रहा था। धीरे-धीरे मेरी रफ़्तार बढ़ने लगी। अब मेरा लण्ड कविता की चूत में तेजी से अन्दर-बाहर हो रहा था। मैं कविता की चूत में अपने लण्ड के तेज-तेज धक्के मारने लगा था।
थोड़ी देर में कविता भी नीचे से अपनी कमर उचका कर मेरे धक्कों का ज़वाब देने लगी और मज़े में बोलने लगी ” सी … सी… और जोररर से जीजुजुजु… येसस्स अरररऽऽ बहुत मज़ा आ रहा है और अन्दर डालो और जीजू और अन्दर येस्स्स् जोर से करो। प्लीज़ ! जीजू तेज-तेज करो ना। आज मुझे बहुत मज़ा आ रहा है।”
कविता को सचमुच में मजा आने लगा था। वो जोर जोर से अपने कूल्हे हिला रही थी और मैं तेज़-तेज़ धक्के मार रहा था। वो मेरे हर धक्के का स्वागत कर रही थी। उसने मेरे कूल्हों को अपने हाथों में थाम लिया। जब मैं लण्ड उसकी चूत के अन्दर घुसाता तो वो अपने कूल्हे पीछे खींच लेती। जब मैं लण्ड उसकी चूत में से बाहर खींचता तो वो अपनी जांघें उपर उठा देती। मैं तेज-तेज धक्के मार कर कविता को चोदने लगा। फिर मैं बैड पर हाथ रख कर कविता के ऊपर झुक कर तेजी से उसकी चूत मारने लगा। अब मेरा लण्ड कविता की चिकनी चूत में आसानी और तेजी से आ-जा रहा था। कविता भी अब चुदाई का भरपूर मजा ले रही थी। वो मदहोश हो रही थी।
मैंने रुक कर कविता से कहा, “कविता अच्छा लग रहा है ?”
कविता बोली,”हाँ जीजू बहुत अच्छा लग रहा है। प्लीज़ ! रुको मत। तेज-तेज करते रहो। हाँ प्लीज़ ! तेज-तेज करो। मैं अन्दर से डिस्चार्ज होने वाली हूँ। प्लीज़ ! चलो करो। अब रुको मत। तेज-तेज करते रहो।”
कविता के मुहँ से ये सुन कर मैंने फिर से कविता को चोदने शुरु कर दिया और अपनी रफ्तार को और बढ़ा दिया। मैंने कविता के बड़े-बड़े हिप्स को अपने हाथों से जकड़ लिया और छोटे-छोटे मगर तेज-तेज शॉट मार कर कविता को चोदने लगा। कविता के मुँह से मस्ती में “ओह्ह्ह्ह्ह्हो होहोह सिस्स्स ह्ह्ह्ह हाह्ह्ह आआ आआ हा-हा करो-करो ऽअआह हाहअआ प्लीज़ ! जीजू तेज-तेज करो।”
करीब 15 मिनट की चुदाई के बाद वो झड़ने वाली थी तभी हम दोनों एक साथ अकड़ गये और एक साथ जोर-जोर से धक्के मारने लगे। फिर अचानक कविता ने मुझे कस कर अपनी बाँहो में भर लिया और बोली “जीजू मेरा काम होने वाला है। प्लीज़ ! जोर-जोर से करो येस-येस अररर् और जोर से य…य…यस यससस मैं हो गईईईईई…! इसके साथ ही कविता की चूत ने अपना पानी छोड़ दिया। उसने एक जोर से आह भरी और फिर वो ढीली पड़ गई।
मैं समझ गया कि कविता डिस्चार्ज हो गई है। लेकिन मेरा काम अभी नहीं हुआ था इसलिए मैं जोर-जोर से अपने लण्ड से कविता की चूत को पेलने लगा। मैं भी डिस्चार्ज होने वाला था, इसलिये मैं तेज-तेज धक्के मारने लगा। कविता रोने सी लगी और मेरे लण्ड को अपनी चूत में से बाहर निकालने के लिए बोलने लगी। लेकिन मैंने उसकी बातों को अनसुना कर धक्के लगाना जारी रखा।
करीब 2-3 मिनट तक कविता को तेज-तेज चोदने के बाद जब मैं डिस्चार्ज होने लगा तो मैंने अपना लण्ड कविता की चूत से बाहर खींच लिया और उसकी चूत के झांटों उपर डिस्चार्ज हो गया और उसके ऊपर गिर गया। फिर मैं उसके उपर लेट कर अपनी तेज-तेज चलती हुई सांसों को नार्मल होने का इन्तज़ार करता रहा। फिर मैं कविता की बगल में लेट गया। कविता भी मेरे साथ लेटी हुई अपनी सांसों को काबू में आने का इंतजार कर रही थी।
कविता की चूत के काले घने घुंघराले बालों में मेरे वीर्य की सफेद बून्दे चमक रही थी। मैंने अपने अन्डरवियर से कविता की चूत के ऊपर पड़े अपने वीर्य को साफ कर दिया। कुछ देर तक ऐसे ही पड़े रहने के थोड़ी देर बाद हम दोनों उठे और अपने कपड़े पहनने लगे। बैड की चादर पर कविता की चूत से निकला हल्का सा खून पडा था। कविता ने तुरन्त डस्टिग़ वाला कपड़ा लेकर गीला करके चादर से खून साफ कर दिया और पंखा चला दिया ताकि चादर जल्दी से सूख जाए।
मैंने कविता से पूछा कि कैसा लगा तो वो बोली “जीजू ! शुरु-शुरू में तो मुझे बहुत दर्द हुआ लेकिन बाद में बहुत मजा आया। इतना मज़ा तो मुझे कभी किसी चीज़ में नहीं आया। सचमुच आज से मैं आपकी दीवानी बन गई हूँ। अब आप जब चाहें ये सब कर सकते हैं। मुझे कोई एतराज नहीं होगा।”
ये सुन कर मैंने खीच कर उसे अपने सीने से चिपका लिया। फिर मैंने अपने जलते हुऐ होंठ कविता के होंठों पर रख दिए। फिर मैं उसके नरम-नरम होंठों को अपने होंठों में भर कर चूसने लगा। कविता भी मुझ से लिपट गई और उसने भी मुझे अपनी बाँहो में कस लिया। फिर मैं कविता को किस करते-करते उस के बालों में हाथ फिराने लगा। फिर मैं उसके गालों पर हाथ फिराने लगा।
फिर मैं अपने हाथ को नीचे ले जाकर उसकी टी-शर्ट के उपर से उसके स्तनों को दबाने लगा और कविता से बोला “एक बार फिर हो जाए। तुम्हें कोई एतराज नहीं।”
वो एकदम छटक कर अलग हो गई और बोली,”क्या करते हो जीजू। बड़े गन्दे हो आप। इतना सब कुछ हो गया। फिर भी चैन नहीं पड़ा है। अब सब्र रखो। दीदी आने वाली होंगी।”
मैंने कविता से कहा “अभी तो तुम कह रही थी कि मैं आपकी दीवानी बन गई हूँ। अब आप जब चाहें ये सब कर सकते हैं। मुझे कोई एतराज नहीं होगा और अब तुम मना कर रही हो।”
कविता बोली “जीजू। मैंने कहा है और एक बार फिर कह रही हूँ कि सचमुच मैं आपकी दीवानी बन गई हूँ और अब आप जब चाहें ये सब मेरे साथ कर सकते हैं। मुझे कोई एतराज नहीं होगा। लेकिन आज अब और नहीं। आपने इतना ज्यादा किया है ना कि मेरे नीचे दर्द हो रहा, शायद कट भी लग गया है। नीचे चीस सी मच रही है। इसलिये आज नहीं। अब कल करेंगे।
कल तक मेरे नीचे का मामला भी ठीक हो जाएगा। अब मैं नहाने जा रही हूँ। गर्म-गर्म पानी से नहाऊगी और गर्म पानी से नीचे की थोड़ी सिकाई करुँगी तो कुछ ठीक हो जाऊँगी। वरना मेरी चाल देख कर दीदी को शक हो जाऐगा। अब कल तक के लिये सब्र रखिये। वैसे भी दीदी भी आने वाली होंगी।”
इतना कह कर उसने हाथ हिला कर शरारत से बाय किया और फिर वो तेजी से बाथरुम की ओर जाने लगी। मैं खड़ा-खड़ा उसे जाते हुए देखता रहा। उस दिन मैं बहुत खुश था क्योंकि कविता को जम कर चोदने की मेरे मन की इच्छा पूरी हो गई थी।
मेरी पत्नी को पहला बेटा हुआ। जब मैं अपनी पत्नी को अपनी ससुराल से लेने गया तो मेरी साली जो बी.ए.- द्वीतीय में पढ रही थी, की गर्मियों की छुट्टियाँ चल रही थी और लगभग एक महीने की छुट्टियाँ बाकी थी। मेरी पत्नी ने घरवालों से जिद करके, छोटे बच्चे की वजह से कविता को भी साथ ले लिया। हम सब गुड़गाँव वापस आ गये।
मेरी पत्नी और कविता सारा दिन छोटे बच्चे की देखभाल में लगी रहती। मैंने 10 दिन की छुट्टियाँ ले ली। दिन में मैं और कविता जब भी खाली होते तो लूडो या कैरम खेलते।
शाम को हम सब पार्क में जाते और अकसर रात का खाना बाहर खाते। मैं कविता से पूछता कि खाने में क्या लेना है। फिर कविता की ही पसंदीदा खाना आर्डर करता। हम सब जब भी मार्केट जाते तो मैं कविता को जरूर से कुछ ना कुछ दिलवाता।
कविता मना करती मगर मैं जबरदस्ती उसे कभी गौगल, कभी पर्स वगैरा कुछ ना कुछ जरुर दिलवाता। चार दिनों में ही कविता और मैं एक दूसरे से बहुत खुल गये थे। रात को जब मेरी पत्नी छोटे बच्चे को दूध पिलाते-पिलाते सो जाती तो मैं और कविता देर रात तक बाते करते। खैर…
एक दिन मेरी पत्नी दोपहर में बच्चे को दूध पिलाते-पिलाते सो गई और कविता नहाने के लिये चली गई। मैं गैरेज में गाड़ी साफ करने लगा। बाथरुम की छोटी सी खिड़की गैरेज में खुलती थी। खिड़की कुछ उँचाई पर थी। इसलिये आसानी से कुछ देख नहीं सकते थे।
मैं जब गाड़ी के टायर पर चढ़ कर गाड़ी की छत साफ कर रहा था तभी मेरी नजर बाथरुम की खिड़की पर पड़ी। बाथरुम में कविता बिलकुल नंगी शावर के नीचे नहा रही थी। उसका जवान नंगा जिस्म शावर में मेरी तरफ पीठ किये था। उसके नंगे और गोरे बदन पर शावर से पानी की बूंदें गिरकर चमक रही थी।
उसके चूतड़ों की गोलाईयां और गहराइयाँ मेरे नजरों के सामने थी। उस समय मेरे बदन में सनसनी फ़ैल रही थी। फिर वो पलटी और उसने अपना बदन अब मेरे सामने कर दिया। अब मुझे उसके बड़े-बड़े स्तनों पर पानी की बूँदें चमक रही थी, छोटे-छोटे भूरे चुचूक मुझे और उत्तेजित कर रहे थे। उसकी चूत के घने बाल पानी की वजह से चिपके हुऐ थे और लटक रहे थे। शावर का ठंडा- ठंडा पानी उसके शरीर पर पड़ कर बह रहा था। वो कभी अपनी चुंचियाँ मलती, तो कभी अपनी चूत साफ़ करती। मैं उसे देख-देख कर और उत्तेजित होने लगा था।
जब वो नहा चुकी तो अपना बदन तौलिये से पौंछने लगी। वो तौलिये से अपनी चुचियाँ मल-मल कर पौंछने लगी। उसकी चुंचियाँ कड़ी होने लगी थी। फिर वो तौलिये से अपनी चूत साफ़ करने लगी। उसकी चूत के काले घने बाल तौलिये से पोंछते ही घुँघराले हो गये और उनमें एक चमक नजर आने लगी। उसने अपना बदन तौलिये से पोछ कर कपड़े पहनने शुरू किए। सबसे पहले उसने अपने वक्ष को सफेद ब्रा में कैद किया।
फिर अपनी चूत को गुलाबी कच्छी से ढका। फिर उसने सफेद मगर रंगबिरंगा लोअर पहना। फिर वो जैसे ही अपना टॉप पहनने लगी तभी उसकी नजर खिड़की की तरफ पड़ी और उसने मुझे देख लिया। मैं फौरन नीचे हो गया।
वो बाथरूम से बाहर आई और तौलिया सुखाने के बहाने गैराज में आई और अनजान बनते हुए बोली,”अरे… जीजू, आप अभी तक गाड़ी ही साफ कर रहे हैं?”
उसकी नजरें मेरी हाफ पैंट के ऊपर थी। जहां मेरा लण्ड हाफ पैंट के ऊपर से उफनता हुआ दिख रहा था और एक टैंट सा बना रहा था।
मैंने कहा,”बस गाड़ी साफ हो गई। चलो चलें।”
और गाड़ी साफ करने का कपड़ा अपनी हाफ पैंट के ऊपर से उफनते हुऐ लण्ड के आगे कर लिया। हम दोनों अन्दर आ गये। मैं आते ही टॉयलेट में घुस गया और अपने उफनते हुए लण्ड को मुठ मार कर शांत किया।
उस दिन से मेरा रोजाना का नियम बन गया, कविता को खिड़की से झाक कर बाथरुम में नहाते देखने का। जब भी कविता बाथरुम में नहाने जाती मैं गैराज में किसी ना किसी बहाने चला जाता। कविता को पता होता था कि मैं उसे छुप-छुप कर देख रहा हूँ। मगर अब वो ओर दिखा-दिखा कर देर तक नहाती। चोरी से खिड़की की तरफ देख कर मुझे अपने को देखते हुए देखती। अब वो जिस समय बाथरूम में नहाने घुसती तो जोर से चिल्ला कर कहती,”दीदी, मैं नहाने जा रही हूँ।”
फिर जब मैं बाथरूम की खिड़की के छेद में से झांक कर देखने लगता तो वो बाथरूम में अपने कपड़े उतारने लगती।
अगर मुझे किसी वजह से गैरेज में आने में देर हो जाती तो वो बाथरुम ऐसे ही टाईम पास करती रहती। जब वो गैरेज के गेट खुलने की आवाज सुन लेती तभी वो बाथरुम में अपने कपड़े उतारना शुरु करती। मुझे अपनी ओर आकर्षित करने के लिए वो अनजान बनते हुए सबसे पहले अपना टॉप उतारती। फिर खिड़की की तरफ मुँह करके अपनी ब्रा उतारती। ब्रा उतरते ही जब उसके स्तन उछल कर बाहर आ जाते तो वो उन स्तनों को धीरे-धीरे से सहलाती और अपने चुचुकों को मसलती।
फिर अपनी पीठ करते हुए अपना लोअर उतार देती। फिर खिड़की की तरफ पलट कर अपनी पेंटी भी उतार देती। फिर अपनी चूत को रगड़ती और चूत के बालों में हाथ फिराती और फिर उन बालों को पकड़ कर ऊपर खींचती। फिर पलट कर अपने चूतड़ों की गोलाईयां और गहराइयाँ मेरी नजरों के सामने करती। ऐसा मुझे लगा। खैर…
उसके ऐसा करने से मेरे बदन में सनसनी फ़ैल जाती और मेरा लण्ड तन कर खडा होकर हाफ पैंट के अन्दर उफन जाता और एक टैंट सा बना देता। फिर जब वो शावर खोल कर पानी अपने बदन पर डालने लगती तो मैं हाफ पैंट के अन्दर से अपना लण्ड बाहर निकाल लेता और कविता को नहाते देखते हुऐ अपने उफनते हुए लण्ड को मुठ मार कर शांत किया करता। फिर जब वो शांत हो जाता और कविता अपना बदन तौलिये से पोंछ कर कपड़े पहनने शुरू करती तो मैं खिड़की से अलग़ हो जाता।
कई दिनों तक ऐसा ही चलता रहा। मेरी छुट्टियाँ खत्म होने वाली थी। बस दो छुट्टियाँ बची थी।
एक दिन मेरी पत्नी पड़ोस की अपनी सहेली के साथ बच्चे के लिये कुछ कपड़े लेने मार्केट चली गई। जाते-जाते वो मुझ से कहने लगी कि आप यहीं रहो। मैं अपनी फ्रैंड के साथ जा रही हूँ। कविता सो रही है। रात को छोटे ने काफी परेशान किया। वो बेचारी सारी रात छोटे को खिलाती रही। उसे सोने दो। जब वो उठ जाये तो उसे खाना गर्म करके दे देना।
जब वो चली गई तो मैंने चुपके से देखा कि कविता स्कर्ट और टी-शर्ट पहन कर सो रही है। मैं बाथरूम में नहाने चला गया। फिर नहा के आकर मैंने फिर कविता की तरफ देखा तो मैं हैरान रह गया। कविता सो रही थी। मगर उसकी टी-शर्ट अन्दर ब्रा तक अपर उठी हुई थी और उसकी सफेद ब्रा दिख रही थी। उसकी स्कर्ट उसकी जांघों के उपर तक उठी हुई थी और उसकी जांघों के बीच में उसकी लाल पैंटी दिख रही थी। उसकी लाल पैंटी के उपर उसकी फूली हुई चूत का उभार भी नजर आ रहा था।
मैंने उसे आवाज लगाई- कविता ! कविता ! ताकि वो अगर उठे या करवट ले तो उसकी स्कर्ट ठीक हो जाये। मगर वो ना तो उठी ना ही उसने करवट ली। मैं कुछ देर तक उसे निहारता रहा। उसका गोरा-गोरा पेट, चिकनी-चकनी टांगें, भरी-भरी जांघे और जांघों के बीच में उसकी लाल पैंटी के ऊपर उसकी फूली हुई चूत मुझे उत्तेजित कर रहे थे।
मैं कमरे से बाहर आकर सौफे पे बैठ गया। मेरा दिलो-दिमाग कविता की ही तरफ था। मन उसको देखने और छूने को कर रहा था। मैं फिर से उठ कर कमरे की तरफ गया। मैंने फिर कविता की तरफ देखा। कविता सो रही थी। मैं दरवाज़े पर खडा उसे कुछ देर तक निहारता रहा। उसकी भरी-भरी चिकनी जांघे और जांघों के बीच में उसकी लाल पैंटी के उपर उसकी फूली हुई चूत मुझे बहुत उत्तेजित कर रहे थे।
मैं कमरे के अन्दर जा कर कविता के पास बैठ गया। मैंने हल्के से उसे आवाज लगाई- कविता-कविता…
मगर वो ना तो उठी ना ही उसने करवट ली। मैं फिर कुछ देर तक उसे निहारता रहा। फिर मैंने अपना हाथ उसकी चिकनी जांघ पर रख दिया। कुछ देर बाद मैं उसकी भरी-भरी मासंल जांघ पर हाथ फिराने लगा। फिर मैंने अपना हाथ उसकी लाल पैंटी के ऊपर उसकी फूली हुई चूत पर रख दिया। उसकी फूली हुई चूत मेरी हथेली के गड्डे में सैट हो गई। फिर मैं अपनी हथेली से उसकी फूली हुई को चूत हल्के-हलके से दबाने लगा। कविता उसी तरह से सो रही थी या सोने का नाटक कर रही थी। खैर…
मेरी हिम्मत बढ़ती जा रही थी। मैं उसकी पैन्टी के अन्दर हाथ डालने की कोशिश करने लगा। मगर उसकी स्कर्ट की वजह से पैन्टी के अन्दर हाथ घुस नहीं पा रहा था। मैंने सावधानी से उसकी स्कर्ट का हुक और साईड चेन खोल दी। फिर मैं उसकी पैन्टी के अन्दर से हाथ डाल कर उसकी चूत के बालों पर हाथ फिराने लगा। कविता उसी तरह से सो रही थी या सोने का नाटक कर रही थी और मेरी हिम्मत लगातार बढ़ती जा रही थी।
फिर मैं कविता की चूत के बालों में हाथ फिराते-फिराते अपनी उँगली कविता की चूत के फाँक के ऊपर फेरने लगा। फिर उंगलियों से कविता की चूत के फाँक को खोलने और बन्द करने लगा। कुछ देर बाद मैंने अपनी एक उँगली कविता की चूत के फाँक के अन्दर घुसा कर कविता की चूत के जी पॉयंट को हल्के-हल्के रगड़ने लगा।
उसकी पैन्टी की वजह से मुझे अपनी उँगली कविता की चूत के अन्दर डालने और कविता की चूत के जी-पॉयंट को रगड़ने में दिक्कत हो रही थी। इसलिये मैंने उसकी पैन्टी को धीरे-धीरे से नीचे खींच कर उसके घुटनों पर कर दी। फिर मैंने अपनी एक उँगली कविता की चूत के अन्दर घुसा उसकी चूत को हल्के-हल्के रगड़ने लगा। कुछ देर बाद मैंने उसकी पैन्टी भी उसकी टांगों से जुदा कर दी और सावधानी से उसकी दोनों टांगों को अलग कर दिया। अब मैं उसकी बगल में लेट कर उसकी चूत के घने बालों पर हाथ फिराने लगा।
फिर मैंने अपना हाथ उसकी चूत पर रख दिया और ऊपर से ही रगड़ने लगा। फिर मैं कविता की चूत की फांक पर हाथ फिराने लगा। फिर हाथ फिराते-फिराते मैंने अपनी उँगलियाँकविता की चूत के अन्दर डाल दी। फिर उंगलियों को कविता की चूत के फाँको में डाल कर रगडने लगा और उसकी चूत के जी-पॉयंट को अपनी उंगलियों से दबाने और हल्के-हल्के रगड़ने लगा। लगभग 5-7 मिनट बाद कविता की चूत से कुछ बहुत चिकना सा निकलने लगा।
अचानक कविता के मुँह से सिसकियाँ निकलने लगी और उसने अपनी आँखें खोल दी और अनजान बनते हुए बोली, “अरे… जीजू कब आए .. और ये क्या कर रहे हैं?”
मैंने कहा “बस अभी ही आया हूँ… और सोचा कि आज कविता को कुछ मजा कराया जाये। सच बताओ, क्या मजा नहीं आ रहा हैं? मुझे पता है तुम जाग रही थी और मजे ले रही थी। वरना तुम्हारे नीचे से चिकना-चिकना सा नहीं निकलता।”
कविता मुस्कुराईं और बोली,”नहीं, सच मैं तो सो रही थी। मुझे नहीं पता आप क्या कर रहे थे। और आपने मेरी चड्डी क्यो उतार रखी है।”
उसका झूठ पकड़ में आ रहा था। मैं बोला,”प्लीज़ ! कविता मजाक मत करो। प्लीज़ ! मेरा साथ दो। हम दोनों मिलकर खूब मजा करेंगे।”
कविता फिर मुस्कुराईं और बोली,”क्या आपका साथ दूँ और क्या दोनों मिलकर मजा करेंगे। बताईये ना। और मेरी चड्डी क्यो उतार रखी है। आप क्या मजा कर रहे थे। और मेरी चड्डी के अन्दर क्या मजा ढूंढ रहे थे।”
मैंने कहा,”बताऊँ कि मैं तुम्हारी चड्डी के अन्दर क्या मजा ढूंढ रहा था।” कह कर मैंने उसे अपने सीने से चिपका लिया और फिर मैंने अपने जलते हुऐ होंठ कविता के होंठों पर रख दिए।
फिर मैं उसके नरम-नरम होंठों को अपने होंठों में भर कर चूसने लगा। कविता ने भी मुझे अपनी बाँहो में कस लिया। फिर मैं कविता को किस करते-करते अपने हाथ को नीचे ले जाकर उसकी टी-शर्ट के उपर से उसके स्तनों को दबाने लगा। फिर कुछ देर बाद मैं उसकी टी-शर्ट के गले के अन्दर से हाथ डाल कर उसके सख्त हो चुके वक्ष को दबाने लगा।
फिर मैं उसकी टी-शर्ट को उतारने लगा तो कविता बोली,”जीजू, क्या करते हो। दीदी आने वाली होंगी।”
मैंने कहा,”चिंता मत करो। वो मार्केट गई और दो-तीन घंटे तक नहीं आँएगी।”
यह कह कर मैं फिर उसकी टी-शर्ट को उतारने लगा। अब कविता ने कोई विरोध नहीं किया। मैंने उसकी टी-शर्ट उतार कर बैड पर फैंक दी। कविता के बड़े-बड़े और गोरे-गोरे स्तन सफेद ब्रा में फँसे हुए थे। मैं उसकी ब्रा के ऊपर से उसके स्तनों को दबाने लगा। कविता ने अपनी आंखे बंद कर ली।
कुछ देर बाद मैं उसकी ब्रा के हुक खोल कर उसकी नंगी पीठ पर हाथ फिराने लगा। फिर कुछ देर मैंने उसकी ब्रा भी उसके तन से जुदा कर दी और दोनों कबूतरों को आज़ाद कर दिया और उन्हें पकड़ कर मसलने लगा। मैं उसके गोरे-गोरे सख्त स्तनों को दबाने लगा और साथ-साथ उसके भूरे चुचूकों को हल्के-हल्के मसलने लगा। फिर मैं उसके नरम-नरम गोरे-गोरे स्तनों को अपने होंठों में भर कर चूसने लगा। कविता के मुँह से सिसकियाँ निकलने लगी। फिर मैंने उसकी खुली पड़ी स्कर्ट को भी उतार कर फैंक दिया। कविता का नंगा, गोरा और चिकना बदन मेरे सामने था।
फिर मैंने कविता से अलग हो कर अपने सारे कपड़े उतार दिये और पूरी नंगा होकर कविता से लिपट गया और मैंने कविता को अपने साथ सटा कर लिटा लिया। मेरा लण्ड तन कर कविता की चिकनी टांगों से टकरा रहा था। मैं कविता की चिकनी टांगों पर हाथ फिराने लगा। उसकी पाव रोटी की तरह उभरी हुई उसकी चूत पर हाथ फेरने लगा। फिर कुछ देर तक उसकी चूत पर हाथ फेरने के बाद मैं अपनी हथेली से उसकी चूत को दबाने लगा।
वो बहुत गरम हो चुकी और जोर-जोर से सिस्कारियां ले रही थी और मेरे बालों पर हाथ फेर रही थी और अपने होंठ चूस रही थी। मैंने उसे धीरे से बिस्तर पर सीधा लिटा दिया और उसकी बगल में लेट कर मैं कविता की चूत के कट पर हाथ फिराने लगा। फिर हाथ फिराते-फिराते मैंने अपनी उँगलियाँ कविता की चूत के अन्दर डाल दी। फिर उंगलियों से कविता की चूत के फाँको को खोलने और बन्द करने लगा। फिर मैं कविता की चूत के जी पॉयंट को रगड़ने लगा। कविता के मुँह से सिसकियाँ निकलने लगी। कविता ने मस्त होकर अपनी आंखें बंद कर ली। कुछ देर बाद कविता की चूत से कुछ चिकना-चिकना सा निकलने लगा था।
मेरा लण्ड कविता की जांघों से रगड़ खा रहा था। मैंने कविता का हाथ पकड़ कर अपने लण्ड पर रख दिया। कविता ने बिना झिझके मेरा लण्ड अपने हाथ में थाम लिया। वो मेरे लण्ड को अपने हाथ में दबाने लगी। मेरा लण्ड तन कर और भी सख्त हो गया था। कविता मेरे लण्ड को मुठ्ठी में भर कर आगे-पीछे करने लगी। फिर वो मेरा लण्ड पकड़ कर जोर-जोर से हिलाने लगी।
अब मैं कविता की चूत मारने को बेताब हो रहा था। मैं कविता के ऊपर आकर लेट गया। कविता का नंगा जिस्म मेरे नंगे जिस्म के नीचे दब गया। मेरा लण्ड कविता की जांघों के बीच में रगड़ खा रहा था।
मैं उसके उपर लेट कर उसके चुचूक को चूसने लगा। वो बस सिस्करियां ले रही थी। फिर मैं एक हाथ नीचे ले जा कर उसकी चूत पर रख कर रगड़ने लगा और फिर एक उंगली उसकी चूत में डाल दी। वो मछली की तरह छटपटाने लगी और अपने हाथों से मेरा लण्ड को टटोलने लगी। मेरा लण्ड पूरे जोश में आ गया था और पूरा तरह खड़ा हो कर लोहे जैसा सख्त हो गया था।
कविता मेरे कान के पास फुसफसा कर बोली,”ओह जीजू। प्लीज़ ! कुछ करो ना। मेरे तन-बदन में आग सी लग रही हैं।”
ये सुन कर अब मैंने उसकी टांगें थोड़ी ओर चौड़ी की और उसके ऊपर चढ़ गया।
फिर अपने लण्ड का सुपाड़ा उसकी चूत पर रख कर रगड़ने लगा। फिर मैंने अपने लण्ड का सुपाड़ा उसकी चूत पर टिका कर एक जोरदार धक्का मारा जिससे लण्ड का सुपाड़ा कविता की कुंवारी चूत के हुआ अन्दर चला गया। लण्ड के अन्दर जाते ही कविता के मुँह से चीख निकल गई और वो अपने हाथ पाँव बैड पर पटकने लगी और मुझे अपने ऊपर से धकेलने की कोशिश करने लगी। लेकिन मैंने उसे कस कर पकड़ा था।
वो मेरे सामने गिड़गिड़ाने लगी, “प्लीज़ जीजू, मुझे छोड़ दीजिए, मैं मर जाऊंगी, बहुत दर्द हो रहा है।
मैंने कहा “कविता तुम ही तो कह रही थी कि जीजू, प्लीज़ ! कुछ करो ना। मेरे तन-बदन में आग सी लग रही हैं। मैंने इसलिये ही तो तुम्हारे अन्दर डाला है। कविता तुम चिन्ता मत करो, पहली बार में ऐसा होता है, एक बार पूरा अन्दर जाने के बाद तुम्हें मज़ा ही मज़ा आएगा। पहली बार तुम्हारी दीदी को भी ऐसा ही दर्द हुआ था और अब मैं और तुम्हारी दीदी रोज ये करते हैं और तुम्हारी दीदी अब खूब एनजाय करती है।”
फ़िर मैंने एक और धक्का लगा कर उसकी चूत में अपना आधा लण्ड घुसा दिया। कविता तड़पने लगी। मैं उसके ऊपर लेट कर उसके उरोज़ों को दबाने लगा और उसके होठों को अपने होठों से रगड़ने लगा। इससे कविता की तकलीफ़ कुछ कम हुई। अब मैंने एक जोरदार धक्के से अपना पूरा का पूरा लण्ड उसकी चूत के अन्दर कर दिया। मेरा 8″ लम्बा और ३” मोटा लण्ड उसके कौमार्य को चीरता हुआ उसकी कुँवारी चूत में समा गया।
इस पर वो चिल्लाने लगी “आहह्ह, मर गई। ओह प्लीज़ जीजू इसे बाहर निकालिये, मैं मर जाउंगी।” उसकी चूत से खून टपकने लगा था।
मैं रुक गया और कविता से बोला “प्लीज़ ! कविता, मेरी जान, अब और दर्द नहीं होगा।”
कविता का यह पहला सैक्सपिरियन्स था। इसलिऐ मैं वही रुक गया और उसे प्यार से सहलाने लगा और उसके माथे को और आँखो को चूमने लगा । उसकी आंख से आंसू निकल आये थे और वो सिस्कारियां भरने लगी थी। यह देख कर मैंने कविता को अपनी बाँहो में भर लिया।
फिर मैंने अपने जलते हुऐ होंठ कविता के होंठों पर रख दिए और मैं उसके नरम-नरम होंठों को अपने होंठों में भर कर चूसने लगा, ताकि वो अपना सारा दर्द भूल जाये। कुछ देर बाद उसका दर्द भी कम हो गया और उसने मुझे अपनी बाँहों में से कस लिया। मैंने भी कविता को अपनी बाँहों में भर लिया। मेरा पूरा लण्ड कविता की चूत के अन्दर तक समाया हुआ था। फिर मैं अपने होंठों से उसके नरम-नरम होंठों को चूसने लगा। कुछ देर तक हम दोनो ऐसे ही एक-दूसरे से चिपके रहे और एक-दूसरे के होंठों को चूसते रहे।
फिर मैं अपने लण्ड को उसकी चूत में धीरे-धीरे अन्दर बाहर करने लगा। कविता ने कोई विरोध नहीं किया। अब शायद उसका दर्द भी खत्म होने लगा था और वो जोश में आ रही थी और अपनी कमर को भी हिलाने लगी थी। उसकी चूत में से थोडा सा खून बाहर आ रहा था जो इस बात का सबूत था कि उसकी चूत अभी तक कुंवारी थी और आज ही मैंने उसकी सील तोड़ी है।
उसकी चूत बहुत टाइट थी और मेरा लण्ड बहुत मोटा था, इसलिए मुझे कविता को चोदने में बहुत मजा आ रहा था। मैं अपने लण्ड को धीरे-धीरे से कविता की चूत के अन्दर-बाहर कर रहा था। फिर कुछ देर बाद कविता ने अपनी टांगें उपर की तरफ मोड़ ली और मेरी कमर के दोनों तरफ लपेट ली। मैं अपने लण्ड को लगातार धीरे-धीरे कविता की चूत के अन्दर-बाहर कर रहा था। धीरे-धीरे मेरी रफ़्तार बढ़ने लगी। अब मेरा लण्ड कविता की चूत में तेजी से अन्दर-बाहर हो रहा था। मैं कविता की चूत में अपने लण्ड के तेज-तेज धक्के मारने लगा था।
थोड़ी देर में कविता भी नीचे से अपनी कमर उचका कर मेरे धक्कों का ज़वाब देने लगी और मज़े में बोलने लगी ” सी … सी… और जोररर से जीजुजुजु… येसस्स अरररऽऽ बहुत मज़ा आ रहा है और अन्दर डालो और जीजू और अन्दर येस्स्स् जोर से करो। प्लीज़ ! जीजू तेज-तेज करो ना। आज मुझे बहुत मज़ा आ रहा है।”
कविता को सचमुच में मजा आने लगा था। वो जोर जोर से अपने कूल्हे हिला रही थी और मैं तेज़-तेज़ धक्के मार रहा था। वो मेरे हर धक्के का स्वागत कर रही थी। उसने मेरे कूल्हों को अपने हाथों में थाम लिया। जब मैं लण्ड उसकी चूत के अन्दर घुसाता तो वो अपने कूल्हे पीछे खींच लेती। जब मैं लण्ड उसकी चूत में से बाहर खींचता तो वो अपनी जांघें उपर उठा देती। मैं तेज-तेज धक्के मार कर कविता को चोदने लगा। फिर मैं बैड पर हाथ रख कर कविता के ऊपर झुक कर तेजी से उसकी चूत मारने लगा। अब मेरा लण्ड कविता की चिकनी चूत में आसानी और तेजी से आ-जा रहा था। कविता भी अब चुदाई का भरपूर मजा ले रही थी। वो मदहोश हो रही थी।
मैंने रुक कर कविता से कहा, “कविता अच्छा लग रहा है ?”
कविता बोली,”हाँ जीजू बहुत अच्छा लग रहा है। प्लीज़ ! रुको मत। तेज-तेज करते रहो। हाँ प्लीज़ ! तेज-तेज करो। मैं अन्दर से डिस्चार्ज होने वाली हूँ। प्लीज़ ! चलो करो। अब रुको मत। तेज-तेज करते रहो।”
कविता के मुहँ से ये सुन कर मैंने फिर से कविता को चोदने शुरु कर दिया और अपनी रफ्तार को और बढ़ा दिया। मैंने कविता के बड़े-बड़े हिप्स को अपने हाथों से जकड़ लिया और छोटे-छोटे मगर तेज-तेज शॉट मार कर कविता को चोदने लगा। कविता के मुँह से मस्ती में “ओह्ह्ह्ह्ह्हो होहोह सिस्स्स ह्ह्ह्ह हाह्ह्ह आआ आआ हा-हा करो-करो ऽअआह हाहअआ प्लीज़ ! जीजू तेज-तेज करो।”
करीब 15 मिनट की चुदाई के बाद वो झड़ने वाली थी तभी हम दोनों एक साथ अकड़ गये और एक साथ जोर-जोर से धक्के मारने लगे। फिर अचानक कविता ने मुझे कस कर अपनी बाँहो में भर लिया और बोली “जीजू मेरा काम होने वाला है। प्लीज़ ! जोर-जोर से करो येस-येस अररर् और जोर से य…य…यस यससस मैं हो गईईईईई…! इसके साथ ही कविता की चूत ने अपना पानी छोड़ दिया। उसने एक जोर से आह भरी और फिर वो ढीली पड़ गई।
मैं समझ गया कि कविता डिस्चार्ज हो गई है। लेकिन मेरा काम अभी नहीं हुआ था इसलिए मैं जोर-जोर से अपने लण्ड से कविता की चूत को पेलने लगा। मैं भी डिस्चार्ज होने वाला था, इसलिये मैं तेज-तेज धक्के मारने लगा। कविता रोने सी लगी और मेरे लण्ड को अपनी चूत में से बाहर निकालने के लिए बोलने लगी। लेकिन मैंने उसकी बातों को अनसुना कर धक्के लगाना जारी रखा।
करीब 2-3 मिनट तक कविता को तेज-तेज चोदने के बाद जब मैं डिस्चार्ज होने लगा तो मैंने अपना लण्ड कविता की चूत से बाहर खींच लिया और उसकी चूत के झांटों उपर डिस्चार्ज हो गया और उसके ऊपर गिर गया। फिर मैं उसके उपर लेट कर अपनी तेज-तेज चलती हुई सांसों को नार्मल होने का इन्तज़ार करता रहा। फिर मैं कविता की बगल में लेट गया। कविता भी मेरे साथ लेटी हुई अपनी सांसों को काबू में आने का इंतजार कर रही थी।
कविता की चूत के काले घने घुंघराले बालों में मेरे वीर्य की सफेद बून्दे चमक रही थी। मैंने अपने अन्डरवियर से कविता की चूत के ऊपर पड़े अपने वीर्य को साफ कर दिया। कुछ देर तक ऐसे ही पड़े रहने के थोड़ी देर बाद हम दोनों उठे और अपने कपड़े पहनने लगे। बैड की चादर पर कविता की चूत से निकला हल्का सा खून पडा था। कविता ने तुरन्त डस्टिग़ वाला कपड़ा लेकर गीला करके चादर से खून साफ कर दिया और पंखा चला दिया ताकि चादर जल्दी से सूख जाए।
मैंने कविता से पूछा कि कैसा लगा तो वो बोली “जीजू ! शुरु-शुरू में तो मुझे बहुत दर्द हुआ लेकिन बाद में बहुत मजा आया। इतना मज़ा तो मुझे कभी किसी चीज़ में नहीं आया। सचमुच आज से मैं आपकी दीवानी बन गई हूँ। अब आप जब चाहें ये सब कर सकते हैं। मुझे कोई एतराज नहीं होगा।”
ये सुन कर मैंने खीच कर उसे अपने सीने से चिपका लिया। फिर मैंने अपने जलते हुऐ होंठ कविता के होंठों पर रख दिए। फिर मैं उसके नरम-नरम होंठों को अपने होंठों में भर कर चूसने लगा। कविता भी मुझ से लिपट गई और उसने भी मुझे अपनी बाँहो में कस लिया। फिर मैं कविता को किस करते-करते उस के बालों में हाथ फिराने लगा। फिर मैं उसके गालों पर हाथ फिराने लगा।
फिर मैं अपने हाथ को नीचे ले जाकर उसकी टी-शर्ट के उपर से उसके स्तनों को दबाने लगा और कविता से बोला “एक बार फिर हो जाए। तुम्हें कोई एतराज नहीं।”
वो एकदम छटक कर अलग हो गई और बोली,”क्या करते हो जीजू। बड़े गन्दे हो आप। इतना सब कुछ हो गया। फिर भी चैन नहीं पड़ा है। अब सब्र रखो। दीदी आने वाली होंगी।”
मैंने कविता से कहा “अभी तो तुम कह रही थी कि मैं आपकी दीवानी बन गई हूँ। अब आप जब चाहें ये सब कर सकते हैं। मुझे कोई एतराज नहीं होगा और अब तुम मना कर रही हो।”
कविता बोली “जीजू। मैंने कहा है और एक बार फिर कह रही हूँ कि सचमुच मैं आपकी दीवानी बन गई हूँ और अब आप जब चाहें ये सब मेरे साथ कर सकते हैं। मुझे कोई एतराज नहीं होगा। लेकिन आज अब और नहीं। आपने इतना ज्यादा किया है ना कि मेरे नीचे दर्द हो रहा, शायद कट भी लग गया है। नीचे चीस सी मच रही है। इसलिये आज नहीं। अब कल करेंगे।
कल तक मेरे नीचे का मामला भी ठीक हो जाएगा। अब मैं नहाने जा रही हूँ। गर्म-गर्म पानी से नहाऊगी और गर्म पानी से नीचे की थोड़ी सिकाई करुँगी तो कुछ ठीक हो जाऊँगी। वरना मेरी चाल देख कर दीदी को शक हो जाऐगा। अब कल तक के लिये सब्र रखिये। वैसे भी दीदी भी आने वाली होंगी।”
इतना कह कर उसने हाथ हिला कर शरारत से बाय किया और फिर वो तेजी से बाथरुम की ओर जाने लगी। मैं खड़ा-खड़ा उसे जाते हुए देखता रहा। उस दिन मैं बहुत खुश था क्योंकि कविता को जम कर चोदने की मेरे मन की इच्छा पूरी हो गई थी।
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